शनिवार, 2 मई 2015

पिता-पुत्र

(बच्चो, आज प्रस्तुत है मित्र हिमांशु पाण्डेय द्वारा रचित एक शिक्षाप्रद बाल कहानी। यह कहानी पहले भी 'रचनाकार' ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुकी है।)

प्रातःकाल पिता ने अपने सुत को चूम जगाया।
सिर सहला उसको दुलार से अपनी गोद उठाया।
पास सटी फ़ुलवारी में ले उसको लगा घुमाने ।
फ़ूल-फ़ूल पर नाच रही तितलियाँ लगा दिखलाने।


घर में आज बहुत ही पहले प्यारा बेटा जागा ।
देखा छत पर शोर मचाता उड़कर बैठा कागा ।
पूछा, पूज्य पिताजी छत पर आया कौन हमारे?
बोला, यह कौवा है मेरे राजा-बेटा प्यारे ।


कुछ ही क्षण में वही प्रश्न फ़िर बच्चे ने दुहराया।
'बाबूजी यह कौन हमारे छत पर उड़कर आया?"
बड़े प्यार से कहा बाप ने, "यह कौआ है बेटा।
खुली हवा में फ़ुदक रहा है रह न सकेगा लेटा।


बेटे ने फ़िर उत्सुकता से वही प्रश्न दुहराया ।
बड़े प्यार से कहा पिता ने बेटा कौआ आया।
बार-बार पूछता रहा वह "कौन-कौन है आया?"
"कौआ है,कौआ है बेटे," पिता यही बतलाया।


बेटे का उत्तर देने में पिता न थका न हारा ।
उसको तो प्राणों से प्रिय था उसका पुत्र दुलारा।
कुछ ही दिन में बाप हो गया बुड्ढा गयी जवानी।
अब उसकी बुढ़िया देती थी उसको दाना-पानी।


बात एक दिन की है कोई दरवाजे पर आया ।
पूछा "कौन?" पिता ने बेटे ने तब नाम बताया।
कम सुनता था पूछ पड़ा फ़िर,"कौन द्वार पर बेटे?"
वह गुस्से में झल्लाया, "बुड्ढे रह चुपके लेटे ।


तुमको क्या चुपचाप कोठरी में न लेटने आता ।"
सह बूढ़ा एक ही बात को बार-बार दुहराता ।
जब भी कुछ पूछता जोर से डाँट पुत्र चिल्लाता।
"नाकों में दम किया, क्यों नहीं यह बुड्ढा मर जाता।"


देख पुत्र का ढंग बाप को हुई बहुत हैरानी ।
माथ ठोकने लगा उमड़ आया आंखों में पानी।
यह कैसा हो गया जमाना कौन किसे समझाये।
लाज-हया हो गयी विदा अपने हो गये पराये ।


कई बार बेटे को उसने अपने पास बुलाया ।
फ़िर तुरंत टेकते लकुटिया पास पुत्र के आया।
कहा,"सुनो तुम छोटे थे, था छत पर कौआ आया।
तुमने पूछा तो मैंने था कई बार बतलाया ।


मैने गुस्सा किया न मेरी जीभ थकी बतलाते ।
एक बार पूछा तो बेटे, तुम इतना गुस्साते ।
बाहर-भीतर दोनों से ही भला आदमी दीखो ।
प्यारे-पुत्र बड़े बूढ़ों का आदर करना सीखो ।


        
-हिमांशु कुमार पाण्डेय
सकलडीहा, चन्दौली (उ0प्र0) 232109
चिट्ठा : सच्चा शरणम