शनिवार, 13 अप्रैल 2019

कुटकुट और पाप्पा

पाप्पा बोले कुटकुट से
"बेटू ! इधर आओ !"
कुटकुट बोली पाप्पा से
"अम नई आते जाओ !"
पाप्पा बोले कुटकुट से
"बेटू ! पढ़ने बैठो।"
कुटकुट बोली पाप्पा से
"पैले तौफ़ी लाओ।"
पाप्पा बोले कुटकुट से
"फिर शुरू शैतानी ?"
कुटकुट बोली पाप्पा से
"मुजको तौफ़ी खानी।"
आख़िर हार के पाप्पा जी ने
कुटकुट को दी टॉफ़ी
तब जाकर कुटकुट जी ने
खोली अपनी कॉपी।
[ कुटकुट ]
-बाबुषा 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

"""आओ बच्चों चलें स्कूल"""
आओ बच्चों चलें स्कूल
तुम नन्हे नन्हे प्यारे फूल
आओ बच्चों चलें स्कूल 
स्कूल में मिल सब खेलेंगे
छुक छुक रेल के रेले में
चटखारे हम ले लेंगे
कैथा इमली हो थैले में
सीखेंगे हम ज्ञान यहाँ पे
तकनिकी विज्ञान यहाँ पे
A, B, C, D आना है
अ, आ, इ, ई गाना है
1, 2, 3 सुनाना है
जोड़ना और घटाना है
हमको पढ़ लिख जाना है
एक अच्छा राष्ट्र बनाना है
क्यों उदास बैठे हो घर में
आओ हो लो साथ डगर में
आओ बच्चों चलें स्कूल
तुम नन्हे नन्हे प्यारे फूल
आओ बच्चों चलें स्कूल

संस्कृति और संस्कार है जाना
योगा, और अभ्यास सिखाना
देखो भैय्या भूल ना जाना
सरकारी स्कूल में आना
सबको है अब नाम लिखाना
सबको है शिक्षित हो जाना
तुम सब भारत के वासी हो
यह स्कूल तुम्हारे हैँ
हम सब सेवक भारत माँ के
यह बच्चे हमको प्यारे हैँ
मत पैसा बर्बाद करो तुम
इन पूंजीपतियों के बंधे में
मत झोको भविष्य बच्चों का
शिक्षा के गोरख धंधे में.
आओ बच्चों चलें स्कूल
तुम नन्हे नन्हे प्यारे फूल
आओ बच्चों चलें स्कूल

तुम चंदा जैसे चमकोगे
सूरज सा तुम दमकोगे
रामु, श्यामू, मोहन प्यारे
आओ हो लो साथ हमारे
गीता, रीता, छोटी, रानी
तुम भी बन जाओ अब ज्ञानी
मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त में ज्ञान
हर अभिभावक का सम्मान
प्रोजेक्टर से होए पढ़ाई
मिले पुष्ट भोजन भी भाई
दूध, फल और MDM खाओ
पहले अपनी सेहत बनाओ
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ है मन
खुश है देखो सब जन जन
ड्रेस मिलेगी यहाँ फ्री
स्वेटर , जूता मोजा भी
बस्ता भी हम देंगे तुमको
किताबें भी मुफ्त मिलीं
खेलने का सामान बहुत है
गुरूजी भी तो बड़े मस्त है
खेल खेल में सिखलाते हैँ
क्रियाएं खूब कराते हैँ
स्कूल तुम्हारे बहुत हैँ सुन्दर
भाग के आओ इसके अंदर
नया सत्र हम शुरू करें
शिक्षा का संकल्प है लें

आओ बच्चों चलें स्कूल
तुम नन्हे नन्हे प्यारे फूल
आओ बच्चों चलें स्कूल

- © ज़ैतून ज़िया

गुरुवार, 14 मार्च 2019

चंदा मामा

चंदा  मामा आसमान  में  रोज़ चले  तुम आते हो
अपनी इन मुद्राओं से तुम मेरा  जी  ललचाते  हो।
कभी हो आधे, कभी हो पूरे ,कभी तीर बन जाते  हो
कैसे करते हो तुम ये करतब ,यूं आकार बदलने  का।
कहां  से सीखा है  ये जादू , तुमने करतब करने का
मै  तो वैसा ही  रहता हूं , दिन  रात और सांझ सवेरे।
मुझको भी वैसा बनना है , जैसे रूप है तुमने घेरे 
ये जादू आसमान में चलता, तो सूरज क्यूँ गोल ही रहता।
कया तुम सूरज से ज्ञानी हो , जो इतना सब कर लेते हो
वो देता दिन को उजियारा , तुम रैन उजेरी कर देते हो ।।

-जैतून ज़िया