चंदा मामा आसमान में रोज़ चले तुम आते हो
अपनी इन मुद्राओं से तुम मेरा जी ललचाते हो।
कभी हो आधे, कभी हो पूरे ,कभी तीर बन जाते हो
कैसे करते हो तुम ये करतब ,यूं आकार बदलने का।
कहां से सीखा है ये जादू , तुमने करतब करने का
मै तो वैसा ही रहता हूं , दिन रात और सांझ सवेरे।
मुझको भी वैसा बनना है , जैसे रूप है तुमने घेरे
ये जादू आसमान में चलता, तो सूरज क्यूँ गोल ही रहता।
कया तुम सूरज से ज्ञानी हो , जो इतना सब कर लेते हो
वो देता दिन को उजियारा , तुम रैन उजेरी कर देते हो ।।
-जैतून ज़िया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
प्रतिक्रियाओं, संदेशों और सुझावों का स्वागत है. टिप्पणी में मोडरेशन स्पैम से बचने के लिए लगाया गया है. पिछले दिनों कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ ब्लॉग पर पोस्ट कर दी गयी थीं. ये बच्चों का ब्लॉग है और ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग अनुचित है अतः टिप्पणी अनुमति के बाद ही प्रकाशित की जायेगी.