गुरुवार, 14 मार्च 2019

चंदा मामा

चंदा  मामा आसमान  में  रोज़ चले  तुम आते हो
अपनी इन मुद्राओं से तुम मेरा  जी  ललचाते  हो।
कभी हो आधे, कभी हो पूरे ,कभी तीर बन जाते  हो
कैसे करते हो तुम ये करतब ,यूं आकार बदलने  का।
कहां  से सीखा है  ये जादू , तुमने करतब करने का
मै  तो वैसा ही  रहता हूं , दिन  रात और सांझ सवेरे।
मुझको भी वैसा बनना है , जैसे रूप है तुमने घेरे 
ये जादू आसमान में चलता, तो सूरज क्यूँ गोल ही रहता।
कया तुम सूरज से ज्ञानी हो , जो इतना सब कर लेते हो
वो देता दिन को उजियारा , तुम रैन उजेरी कर देते हो ।।

-जैतून ज़िया

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