सोमवार, 30 मार्च 2015

कोई लाके मुझे दे

बच्चों, ये ब्लॉग सिर्फ आपके लिए है. इसमें होगा खूब मज़ा, खूब मस्ती, खूब हँसी और खूब सारा नॉलेज भी. अरे-अरे डरने की कोई बात नहीं! पढ़ाई-वढ़ाई नहीं, सिर्फ खेल-खेल में हम कुछ सीखेंगे...आगे जैसा-जैसा आप कहेंगे, हम ब्लॉग में और भी कई चीज़ें जोडेंगे, घटाएंगे और फेरबदल करेंगे...लेकिन अभी दामोदर अग्रवाल जी की एक कविता, जो आपलोगों को खूब पसंद आयेगी-

कोई लाके मुझे दे
कुछ रंग भरे फूल
कुछ खट्टे-मीठे फल
थोड़ी बाँसुरी की धुन
थोड़ा जामुन का जल ...कोई लाके मुझे दे

एक सोना जड़ा दिन
एक रूपों वाली रात
एक फूलों भरा गीत
एक गीतों भरी बात... कोई लाके मुझे दे

एक छाता छाँव का
एक धूप की घड़ी
एक बादलों का कोट
एक दूब की छड़ी...कोई लाके मुझे दे

एक छुट्टी वाला दिन
एक अच्छी सी किताब
एक मीठा सा सवाल
एक नन्हा सा जवाब... कोई लाके मुझे दे 

1 टिप्पणी:

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